कुसुम को करड़ी के नाम से भी जाना जाता है। कुसुम की जड़ें जमीन में गहराई तक जाकर पानी सोख लेने की क्षमता रखने के कारण इसे बारानी खेती के लिये विशेष उपयुक्त पाया गया है। सिंचित क्षेत्र में कुसुम का पौधा कम पानी में भी सफलतापूर्वक उगता रहता है। सितंबर माह में भूमि में पर्याप्त नमी होते हुए भी अन्य रबी फसलें जैसे गेहूं, चना आदि की बुआई अधिक तापमान के कारण नहीं कर सकते हैं। लेकिन कुसुम ताप असंवेदनशील होने के कारण इन परिस्थितियों में भी लग सकते हैं और भूमि में स्थित नमी का पूरा लाभ ले सकते हैं। इसके दानों में तेल की मात्रा 30 से 35 प्रतिशत होती है। यह तेल खाने के लिये अच्छा स्वादिष्ट तथा इसमें पाये जाने वाले विपुल असंतृप्त वसीय अम्लों के कारण हृदय रोगियों के लिए विशेष उपयुक्त होता है। इसके तेल में लिनोलिक अम्ल लगभग 42 प्रतिशत होता है जिसके कारण कोलेस्टेराल की मात्रा खून में नहीं बढ़ पाती है। अत: इसका सेवन हृदय रोगियों के लिये उपयुक्त रहता है। इसके हरे पत्तों की उत्तम स्वादिष्ट भाजी बनती है, जिसमें लौह तत्व तथा केरोटीन से भरपूर होने के कारण बहुत स्वास्थ्यप्रद होती है।
कुसुम की सूखी लाल पंखुडियों से उत्तम प्रकृति का (खाने योग्य) रंग प्राप्त होता है। इन पंखुडि़यों से तैयार कुसुम चाय से चीन में बहुत सी बीमारियों का इलाज किया जाता है।
चना व अलसी के अतिरिक्त कुसुम को मसूर, राजगिरा, राई व सरसों के साथ भी अन्तर्वर्तीय फसल के रूप में ले सकते हैं। अन्तर्वर्तीय फसल पद्धति में कुसुम की 2 कतारों के बाद दूसरी फसल की 6 कतारें बोयी जाती हैं।
बारानी खेती में सोयाबीन–कुसुम फसल पद्धति अधिक लाभकारी पाई गई है। खरीफ मौसम में उड़द एवं मूंग की फसल लेने के बाद जब खेत खाली हो जाते हैं तो उसी समय खेत की तैयारी करके कुसुम की बुआई कर सकते हैं। हालांकि उस समय तापमान अधिक रहता है लेकिन कुसुम फसल ताप असंवेदनशील होने के कारण इसकी बुआई सितंबर के अंत में कर सकते हैं, जबकि अन्य रबी फसलों की बुआई अधिक तापमान के कारण नहीं कर सकते हैं।
बुवाई:
1. असिंचित अवस्था में भूमि में अधिक नमी नहीं होने पर: असिंचित अवस्था में कुसुम की बोनी की जानी हो तो जमीन की अच्छी तैयारी करना अति आवश्यक है जिससे खेत में भरपूर नमी नहीं होने पर भी अच्छा अंकुरण हो सके। बोनी के उपरान्त कतारों को कटाते हुए खेत में पाटा अवश्य चलावें।
विधि:
* खेत की तैयारी व नमी को देखते हुए या तो सूखा बीज बोये (विशेषत: बोनी के बाद वर्षा की संभावना होने पर) या बीज को 12 से 14 घंटे पानी में भिगोकर भी बिजाई कर सकते हैं।
* बीज गहरा बोयें ताकि वह नमी में गिरे तथा पाटा चलायें।
सावधानी: इस विधि से बोये खेत में अंकुरण के लिये बाद में सिंचाई नहीं करें।
2. खेत में पर्याप्त नमी नहीं होने पर विधि: बीज सूखी जमीन में बोये और एक सिंचाई दें। यह पद्धति ज्यादा अच्छी है क्योंकि सिंचाई के पानी का उपयोग शुरू से ही अंकुरण व पौध के बढ़वार के लिये होता है।
अच्छे अंकुरण के लिए उपाय: कुसुम के अंकुरण का विशेष ध्यान रखना जरूरी है। अच्छा अंकुरण व पर्याप्त पौध संख्या अच्छी पैदावार का सूचक है। स्मरण रहे कि कुसुम को अंकुरण के लिये ज्यादा नमी की आवश्यकता होती है क्योंकि इसके बीज का छिलका कड़ा होता है। इसलिये जब तक बीज पर्याप्त नमी में नहीं गिरता व बीज के चारों ओर गीली मिटटी नहीं चिपकती तब तक बीज फूलेगा नहीं व अंकुरित नहीं होगा। यह आवश्यक है कि बोनी के तुरंत बाद पाटा चलाये जिससे कूड में से नमी उड़ नहीं पाये व गीली मिटटी बीज के चारों ओर चिपकी रहे। यह ध्यान रहे कि बीज के अंकुरण के लिए ज्यादा नमी की आवश्यकता होती है लेकिन एक बार बीज फूलने पर अत्यधिक नमी बीज को नुकसान भी पहुंचाती है, जिससे अंकुरण नहीं होता। इसलिए बीज की बोनी नमी में करने के बाद व पाटा लगाने के बाद यदि वर्षा होती है या सिंचाई की जाती है तो अंकुरण नहीं होता क्योंकि फूला हुआ बीज पानी के संपर्क में आ जाता है व सड़ जाता है। इसी प्रकार यदि बीज पानी में भिगोकर बोया है तो इसके बाद सिंचाई नहीं करें।
भूमि: मध्य से भारी काली/गहरी भूमि विशेष उपयुक्त होती है।
बीज की मात्रा: 20 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर
बोने की विधि: बीज को कतारों में बोयें। कतारों की आपसी दूरी 45 से.मी. रखें। कतारों में पौधों से पौधें की दूरी 20 से.मी. रखना चाहिये।
बीजोपचार: 3 ग्राम थायरम प्रति किलो ग्राम बीज में (थायरम न होने पर बविस्टिन, ब्रासिकाल आदि फफूंद नाशक दवा)
उर्वरक की मात्रा: 40 किलो ग्राम नत्रजन, 40 किलो ग्राम स्फुर प्रति हेक्टेयर। जहॉ पोटाश की आवश्यकता हो 20 किलो ग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर तथा 20 से 25 किलो ग्राम गंधक का प्रयोग करें।
पौधों का विरलीकरण: बोनी के 20 से 25 दिन बाद कतारों में पौधों की आपसी दूरी 20 से.मी. रखें।
निंदाई एवं गुडाई: अंकुरण के पश्चात आवश्यकतानुसार एक या दो बार निंदाई करने के बाद ‘डोरा’ चलाकर खेत को नींदा रहित रखें व मिटटी की पपडी को तोड़ते रहें जिससे भूमि में जल का ह्रास कम होगा।
सिंचाई: एक या दो सिंचाई देना पर्याप्त है। जब पौधा ऊंचा बढ़ने लगें (लगभग 50-55 दिन बाद) तब पहली सिंचाई व जब पौधे में शाखाऍ पूर्ण विकसित हो (लगभग 80-85 दिन बाद) तब दूसरी सिंचाई दें। दो से अधिक सिंचाई न करें।
पौध संरक्षण:
(अ) कीट:
(1) माहो: कुसुम में माहों कीट की समस्या है। इसके नियंत्रण के लिए निम्न दो विधियॉं हैं।
1. नीम बीज के निमोली का 5 प्रतिशत घोल जब फसल पर सबसे पहले दिखायी दें उसके एक हफ्ते बाद छिड़काव करें। इसके 15 दिन बाद रोगर (डाइमेथेएट) 750 मि.ली. दवा प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
2. जब माहों सर्वप्रथम कुसुम की फसल पर दिखाई दे तो तुरंत नीम बीज के निमोली का 5 प्रतिशत घोल खेत के चारों तरफ के बार्डर पर 2 मीटर चौडा छिड़काव करें और इसके 15 दिन बाद रोगर (डाइमेथोंएट) 750 मि.ली. दवा प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। इससे 90 प्रतिशत माहो नियंत्रित होते हैं क्योंकि यह कीट सबसे पहले बार्डर पर आते है इसके बाद खेत के अन्दर जाते हैं।
(2) मक्खी तथा फलछेदक इल्ली: यदि इन कीटों की समस्या हो तो तब थायोडान 750 मि.ली. प्रति हेक्टेयर का छिड़काव फसल पर करें।
(ब) रोग: कुसुम में रोग संबंधी कोई समस्या नहीं है। बिमारियॉ हमेशा वर्षा के बाद, अधिक आर्द्रता की वजह से, खेत में फैली गंदगी से, खेत के आस–पास काफी समय से संचित गंदा पानी फसल में बहकर आने से एक ही स्थान पर बार – बार कुसुम की फसल लेने से होती है। अत: उचित फसल- चक्र अपनाना, बीज उपचारित कर बोना व प्रतिवर्ष खेत बदलना आवश्यक है।
1. जड़ सडन रोग: बोनी पूर्व बीजोपचार करें। सूखे से अत्यधिक प्रभावित फसल को एकाएक सिंचाई देने से यह रोग फैलता है।
2. अल्टरनेरिया पत्तों के धब्बे: बोनी पूर्व बीजोपचार करें। रोग नियंत्रण हेतु फसल पर डायथेन- एम 45 का 0.25 प्रतिशत छिड़काव करें।
पक्षियों से सुरक्षा: पक्षियों में विशेषकर तोते इस फसल को अधिक नुकसान पहुंचाते हैं। इसलिए दाने भरने से लेकर पकने तक लगभग तीन हफ्ते फसल की रखवाली आवश्यक है। तोते कुसुम के कैप्सूल को काटकर नुकसान पहुंचाते हैं एवं दानों को खाते हैं।
कटाई एवं गहाई: कार्यिक परिपक्वता (फसल पूर्ण सूखने) पर कांटेदार कुसुम की कटाई हाथ में दस्ताने पहिनकर या उसे कपड़े से लपेटकर या दो शाखा वाली लकड़ी में पौधे को फंसाकर दराते से करते हैं। परिपक्व पौधों को डंडे से पीटकर, चौडे मुंह वाले पावर थ्रेसर से या पौधों के उपर ट्रेक्टर चलाने से बड़ी आसानी से होती है। बिना कॉटे वाली जातियॉ की कटाई में कोई परेशानी या दस्ताने पहनने की जरूरत नहीं होती है।
उपज
असिंचित फसल : 12 से 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर
सिंचित फसल : 25 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर
आवश्यक सावधानियॉ:
* कुसुम को अन्य रबी फसलों की अपेक्षा जल्दी बोया जाता है। अत: जमीन की तैयारी बहुत जल्दी करना आवश्यक है।
* बुवाई के समय जमीन में अंकुरण के लिये पर्याप्त नमी होना आवश्यक है।
* कुसुम को गहरी जमीन में ही बोये।
* उर्वरकों का संतुलित प्रयोग अवश्य करें।
उपयोग:
* कुसुम फूल उत्तम औषधि
* बीजों से उत्तम किस्म का स्वादिष्ट तेल।
* यह तेल हृदय रोगियों के लिए विशेष रूप से उपयुक्त ।
* तेल से वार्निश, रंग, साबून आदि उत्पादक पदार्थ बन सकते है।
* हरी पत्तियों से स्वादिष्ट सब्जी एवं लौह तत्व तथा केरोटीन से भरपुर।
* फफूंद न लगने वाली खली जिसमें उत्तम प्रोटीन तत्व जो दुधारू पशुओं के लिए उपयुक्त है।
* फूलों से प्राकृतिक उत्तम रंग।
* शुष्कता प्रतिरोधी फसल जो कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी अधिक पैदावार देती है।
* कांटेदार फसल पूर्ण बढ़ने पर जानवरों से सुरक्षा ।
Friday, May 8, 2009
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